अधूरी रातें (Incomplete Nights)
A poem for my incomplete nights. अधूरी रातें रातें बीत ते नहींमेरे आंखें ढलते नहीं,नींद आतें नहींआतें हें तो कईं ख़यालातें। सो कर मैं सोचता रहता हूँकईं हालतें,मंजिलें दिखतें नहीं, ख़यालें जातें नहींपर खोजते रहते हैं कई दरवाजें। पहले मैं रात रात भर देखता रहता थाकईं चलचित्रें,आज मैं देकता रहता हूँकईं मंजिलें और फ़ासले के …